सुप्रीम कोर्ट में अर्णब गोस्वामी की याचिका पर हुई सुनवाई, कोर्ट ने जमानत से वंचित रखने को कहा न्याय का मखौल
रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के editor-in-chief अर्णब गोस्वामी को एक 2 साल पहले हुए एक इंटीरियर डिजाइनर की आत्महत्या के मामले में अलीबाग कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। जिसके बाद उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की। 2 दिन तक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने भी उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने मंगलवार रात सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
आज यानी बुधवार को उनकी अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई हुई है। बता दें कि अर्णब गोस्वामी पर इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच ने सुनवाई की है। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि, कोर्ट को अर्णब की ताने मारने की आदत को नजरअंदाज करते हुए केस को ध्यान में रख कर फैसला करना चाहिए।
अदालत को करनी होगी स्वतंत्रता की रक्षा
#WATCH Republic TV Editor Arnab Goswami released from Mumbai's Taloja Jail following Supreme Court order granting interim bail pic.twitter.com/YzGfIm3wGo
— ANI (@ANI) November 11, 2020
अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि, कोर्ट का इस मामले में दखल देना बहुत जरूरी है। नहीं तो वह बर्बादी के रास्ते पर आगे बढ़ जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि, 2 लोगों के विचारों में मतभेद हो सकते हैं लेकिन अदालत को इस तरह के मामलों में लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा भी करनी चाहिए।
Supreme Court orders Republic TV editor-in-chief Arnab Goswami and other co-accused be released on interim bail. pic.twitter.com/WveX5XglSl
— ANI (@ANI) November 11, 2020
नहीं तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। अगर कोर्ट ही कानून ना बनाएं और स्वतंत्रता की रक्षा ना करें तो यह जिम्मेदारी फिर किसकी होगी। जस्टिस ने कहा कि, किसी को उनकी सोच नहीं पसंद आती है, तो ठीक है यह उनकी जिम्मेदारी है क्योंकि उन्होंने कभी भी अर्णब का चैनल नहीं देखा है। पीड़ित व्यक्ति के लिए निष्पक्ष तरीके से जांच की जानी चाहिए। लेकिन सरकार को किसी भी व्यक्ति को लक्षित करके उसके अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए।
पैसे ना देने को उकसाना नहीं कहा जा सकता
बता दे कि इंटीरियर डिजाइनर के सुसाइड नोट में लिखा था कि अर्णब गोस्वामी और दो अन्य लोगों ने उनके पैसे नहीं लौटाए हैं। अर्णब को मृतक के 88 लाख रुपए देने थे। इस आधार पर अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल से कई सवाल किए हैं। कोर्ट ने पूछा है कि, अर्णब गोस्वामी पर धारा 306 लगाई गई हैं। लेकिन इसके लिए तो वास्तविक रुप से आत्महत्या के लिए उकसाया जाना जरूरी है।
#ArnabIsBack | Republic Media Network is grateful to the Honourable Supreme Court of India for its order today that granted bail to our Editor-in-Chief Arnab Goswami. We are also deeply thankful & ever-indebted to Senior Advocate Harish Salve and the entire team at Phoenix Legal pic.twitter.com/5qqUMdru8Z
— Republic (@republic) November 11, 2020
अगर कोई व्यक्ति किसी के पैसे नहीं देता है ऐसे में वह व्यक्ति आत्महत्या कर ले। तो इसमें किसी पर उकसाने का आरोप कैसे लग सकता है। अगर ऐसे मामले में किसी को जमानत ना दी जाए तो क्या यह कानून और न्याय व्यवस्था का मजाक उड़ाना नहीं होगा। कोर्ट ने आगे कहा कि, अगर अर्णब गोस्वामी अपने निजी चैनल पर किसी को ताना मार देते हैं तो कोर्ट और राज्य सरकार को उसे नजरअंदाज करके केस पर ध्यान देते हुए फैसला लेना चाहिए। या फिर सरकार ऐसा सोचती है कि अर्णब जो भी कहते हैं उससे चुनाव में कोई फर्क पड़ता है।