1 रुपये वाले मटर के पैकेट बैच कर अंशुल गोयल ने बानाई अपनी फैक्ट्री, अब कमा रहे हैं करोड़ों रुपये
शाहरुख खान की फ़िल्म रईस का एक बहुत ही बेहतरीन डायलॉग है, जिसमें वे कहते हैं – “कोई भी धंधा छोटा नहीं होता, और धंधे से बड़ा कोई ईमान नहीं होता।” आज जिस व्यक्ति की हम कहानी बताने वाले हैं उसने अक्षरशः इस बात को चरितार्थ किया है। यह कहानी है राजस्थान के टोंक जिले के रहने वाले अंशुल गोयल की। अंशुल वैसे तो इंजीनियरिंग के विद्यार्थी रहे हैं, मगर इन दिनों वे स्नेक्स का व्यवसाय कर रहे हैं। इंजीनियरिंग करते हुए ही उन्होंने एक एंटरप्रेन्योरशिप प्रोजेक्ट में हिस्सा लिया, और वहीं से उन्होंने मन में यह संकल्प बना लिया था कि अब उन्हें व्यवसाय जगत में ही नाम कमाना है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि अंशुल ने नौकरी के लिए संघर्ष नहीं किया, उन्होंने अपनी जीवन के दो साल प्रतियोगी नौकरी की तैयारी में लगा दिया मगर कहीं से भी उन्हें कोई कामयाबी हाथ नहीं लग रही थी। लिहाजा उस दौर में उन्हें एक साथी मिला जिसकी मदद से उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। आज अंशुल महीने का आराम से एक से डेढ़ लाख रुपया कमा लेते हैं।
अंशुल गोयल के अनुसार हर भारतीय मिडिल क्लास फैमिली की तरह उनकी फैमिली भी इंजीनियरिंग खत्म करने के बाद नौकरी करने का दबाव बना रही थी। वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा बिजनेस में आने वाले थपेड़ो का सामना करे। मगर कॉलेज में एक बिजनेस प्रोजेक्ट करने के बाद अंशुल को समझ आ गया था उनकी राह कौनसी है। मगर फिर भी घर वालों का मन रखने के लिए उन्होंने दो साल सरकारी नौकरी की तैयारी में लगा दिए। मगर अंशुल जानते थे एक नियत वेतन और एक नियत समय की पाबंदी में वे बंध नहीं सकते।
जब परीक्षाओं में असफल रहे तब अंशुल ने व्यापार में कदम रखने की सोची, इसके लिए पहले उन्होंने कई लोगों से बात की। बाद में उन्हें ध्यान आया कि एक रुपये वाले पैकेट में मटर को फ्राई करके बेचा जा रहा है। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए लागत कम है, और इसमें बच्चों को ही आकर्षित करना है। लिहाजा अंशुल ने यह व्यापार करने का मन बना लिया।
अंशुल गोयल के अनुसार साल 2017 में उन्होंने जयपुर से करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत लगा कर इस व्यवसाय की शुरुआत की। पैकेट की प्रिन्टींग में उन्होंने करीब 60 से 70 हजार तक का ख़र्च किया और करीब 50, 000 रुपये पैकिंग के लिए सेकेंड हैन्ड मशीन खरीदने में लगा दिए। इसके अलावे मार्केट से लगभग दो क्विंटल सुखी मटर भी खरीदी। हालांकि शुरुआती दिनों में उन्हें थोड़ी मुश्किलें जरूर आई मगर एक बार अनुभव होने के बाद वे इस काम में महारत हासिल कर गए।
पहले उनका बिजनेस सिर्फ टोंक तक ही सीमित था मगर फिर उनके प्रोडक्ट टोंक से बाहर भी जाने लगे। लोगों का उन्हें बंपर रिस्पांस मिल रहा था। और उनसे अन्य प्रोडक्ट की भी डिमांड होने लगी, मगर अंशुल की आर्थिक हालत उस वक्त ठीक नहीं थी लिहाजा उन्हें मार्केट से 50 लाख का लोन लेना पड़ा। और एक पार्टनरशिप के ज़रिए उन्होंने एक बड़ी फैक्ट्री लगा ली, अब अंशुल की कम्पनी 10 से भी ज़्यादा प्रोडक्ट्स का विक्रय करती है। वहीं बाज़ार का 50% ऋण भी उन्होंने इस प्रोडक्ट से कमा कर भर दिया है।