पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हराने वाले आल्हा और ऊदल की कहानी, भीम और अर्जुन का माने जाते थे अवतार
आल्हा और ऊदल : भारत का इतिहास कई वीरों के अदम्य साहस और शौर्य का साक्षी रहा है। धरती मां ने यहां ऐसे ऐसे सपूतों को जन्म दिया जिनकी साहस की वीर गाथाएं आने वाली पीढ़ियां के लिए प्रेरणा बन गईं।
महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई जैसे तमाम योद्धाओं के बारे में तो आप जानते ही होंगे। हालांकि कुछ वीर पराक्रमी ऐसे भी थे जिन्होंने इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया लेकिन आज उनके बारे में लोग कम ही जानते हैं। ऐसे दो वीर योद्धा थे आल्हा और ऊदल। तो चलिए आज आपको बताते हैं आल्हा और ऊदल की वीरता के किस्से।
आल्हा और ऊदल के बारे में मशहूर हैं ये किस्से
ये बात 12वीं सदी की है जब बुंदेलखंड के महोबा के दशरथपुरवा गांव में आल्हा और ऊदल का जन्म हुआ। ये दोनों भाई बचपन से ही पराक्रमी थे। सिर्फ पराक्रम ही नहीं बल्कि उन्हें शास्त्र का भी काफी ज्ञान था। उनके पराक्रम और साहस की कहानी यूपी के कई हिस्सों तक फैली है जिसमे कानपुर और कन्नौज शामिल है।
बुंदेली इतिहास में उनका नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है और उनकी वीर गाथाएं बेहद ही मशहूर हैं।
आल्हा और ऊदल को भीम और अर्जुन का अवतार भी माना जाता था। उन दोनों पराक्रमी भाईयों की इन दोनों भाईयों के अंदर भी गजब का साहस था। ये भी कहा जाता था कि दोनों दसराज और दिवला के पुत्र थे। जानकार बताते हैं कि आल्हा मां शारदा के परमभक्त थे। अपनी भक्ति के चलते ही उन्हें मां शारदा से अमरता का वरदान मिला था।
आज भी माना जाता है कि बैरागढ़ के मां शारदा के मंदिर में दोनों भाई पूजा पाठ के लिए आते हैं। रात को सफाई के बाद जब मंदिर बंद हो जाता है तो सुबह कपाट खोलने पर पूजा के साक्ष्य नजर आते हैं।
पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में दी थी मात
ऊदल के सम्मान में आज भी वहां के लोग घोड़े की सवारी नहीं करते हैं। 800 साल बीत जाने के बाद भी महोबा में शादियों के समय दूल्हे को भी घोड़ी पर नहीं बैठने दिया जाता है।
आल्हा और ऊदल के बारे में कई दिलचस्प किस्से मशहूर हैं। उन्होंने अपने समय में बहुत सी लड़ाईयां लड़ीं थीं। हालांकि इतिहास को भी हैरान कर देने वाली एक लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी।
दरअसल आल्हा और ऊदल दोनों ने आखिरी युद्ध दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान के साथ किया था। 11वीं सदी में बुंदेलखंड में विजय प्राप्त करने के इरादे से पृथ्वीराज ने चंदेल शासन पर हमला किया था। ये वो समय था जब महोबा चंदेलों का राजधानी थी।
बैरागढ़ की एक बड़ी लड़ाई में ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके बाद उनके छोटे भाई आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान की सेना पर हमला किया था। एक घंटे के भीषण युद्ध के बाद आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था।
हालांकि पृथ्वीराज को अपने गुरु गोरखनाथ से जीवनदान मिला था। इसके बाद आल्हा ने सन्यास का रास्ता अपना लिया था।