रिपब्लिक टीवी के एडिटर एंड चीफ अर्नब गोस्वामी से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार की खूब किरकिरी हुई। दरअसल 13 अक्टूबर को अर्नब गोस्वामी को महाराष्ट्र सरकार ने विशेषाधिकार लेटर लिखा था जिसके बारे में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि पत्रकार को डराने की नीयत से यह लेटर लिखा गया था जिस पर महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव को अवमानना नोटिस दे दिया गया है।
साथ ही कोर्ट ने इस मामले में अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर भी रोक लगा दी है। गौरतलब है कि विधानसभा सचिव ने उद्धव ठाकरे के अपमान करने के आरोप में विधानसभा से विशेष अधिकार नोटिस जारी कर दिया था।
BIG BREAKING: Supreme Court DIRECTS Arnab Goswami SHALL NOT BE ARRESTED Pursuant To Breach Of Privilege Notice By Maharashtra Assembly
COMES DOWN HEAVILY ON Maha Assembly. ISSUES CONTEMPT NOTICE to Secretary of Maharashtra Legislative Assembly 👏👏#ArnabGoswami #ReleaseArnabNow pic.twitter.com/Y8OFbB4tI5
— Rosy (@rose_k01) November 6, 2020
इसी मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि अगली सुनवाई में विधानसभा सचिव भी उपस्थित हो। तब तक कोर्ट का निर्देश है कि अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी ना की जाए। बता दें कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे की अगुआई वाली बेंच ने इस मामले में वरिष्ठ वकील अरविंद दातार को न्याय मित्र घोषित किया है।
The petition in SC against the arrest of Journalist Siddique Kappan by Adityanath Govt has been listed on 16th Nov.
How does Arnab Goswami always manage next day hearings in HC & SC, while others have to wait weeks & months?
One Nation but Different Laws for Different People?
— Srivatsa (@srivatsayb) November 6, 2020
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह लेटर सीधे तौर पर न्याय प्रणाली में दखल देने वाला है। क्योंकि इसमें साफ तौर पर अर्नब को कोर्ट घसीटने की धमकी दी है। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन इस लेटर को ऐतिहासिक और हैरान कर देने वाला बताया।
Big victory for #ArnabGoswami and our team @republic in Supreme Court. Supreme Court curtails intimidation, and threat of arrest by Maharashtra assembly to #Arnab. Harish Salve does it again. #IndiaWithArnabGoswami
— Pradeep Bhandari(प्रदीप भंडारी) (@pradip103) November 6, 2020
कोर्ट के अनुसार, ”खत लिखने वाले का स्पष्ट उद्देश्य याचिकाकर्ता को डराना प्रतीत होता है, क्योंकि उसने कोर्ट का रुख किया और उसे ऐसा करने को लेकर जुर्माने की धमकी तक दी गई।” कोर्ट ने अपने बयान में आगे कहा, ”विधानसभा को यह समझने की सलाह दी जानी चाहिए थी कि कोर्ट जाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकार है।”